Wednesday, October 15, 2008

उसकी गली में.......


उसकी गली में फिर मुझे एक बार ले चलो।
मजबूर कर के मुझको मेरे यार ले चलो।

दीवाना कह के लोगों ने हर बात टाल दी।
दुनीया ने मेरे पैरो में ज़ंजीर डाल दी।

चाहो जो तुम तो मेरा मुक़द्दर संवार दो।
यारो ये मेरे पैरो की बेडी उतार दो।

उसने किया है मिलने का इकरार, ले चलो.................
उसकी गली में फिर मुझे एक बार ले चलो.................

तुम हरदम खुश रहा करो ...



कहते है वो की
"हम पर कोई शेर लिखा करो ।"
सोचते है हम के क्या लिखा करे
सिवाए इसके की 
तुम महेकती बहारों की तरह ,
झील मीलाती पत्तीयों की तरह ,
जी भर के जिया करो , खुश रहा करो............
दिन में उमंगें लीये ,
रात में सुहाने सपने लीये ,
जी भर के जिया करो, खुश रहा करो.............
अगली सुबह को हसी के साथ मिला करो
तुम्हारे लिए और क्या आरजू होगी
'मेरे हमसफ़र' जी भर के जिया करो, तुम हरदम खुश रहा करो ...

Thursday, October 9, 2008

डूबते इलाको की तकलीफ


बिहार और उडीसा में प्रदेश के डूबते इलाको की तकलीफ दब सी गई है। उत्तर प्रदेश के जीले बाराबंकी, लखीमपुर, गोंडा, बहराइच, बस्ती, सीतापुर, लखनऊ में बाढ़ उफान रही है। यहाँ भी इत्तेफाकन वैसी ही तस्वीर देखने को मीली, जैसी कुछ दीनों पहले बीहार में देखी थी।
गले-गले डूबेझोपडी के ऊपर आसरा लिए,हाथ जोड़े मदद की गुहार लगातेपेड़ पर टिकेजान बचाने को भागते,नाव पर लदे लोग..... । कई गाव तो नक्से से ही गायब हो गएखाने के लिए दाना नही है। भूख से अकुलाए बच्चो के लिए माँ के पास सिर्फ दिलासा है। जो राहत मील रही है, वह पीडितो की नजर में महज खानापूर्ती है । सरकार की सक्रियता के बावजूद लोग मदद के लिए परेशान है। सवाल है आख़िर राहत जा कहाँ रही है ?

Sunday, October 5, 2008

"अरुषी मर्डर केस"


इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में डी.पी.एस. की स्टुडेंट आरूषी के मर्डर की "टी.आर.पी." लोक्प्रीयता "आई.पी.एल." खेलों से ऊपर रही है। आरूषी की हत्या एक पहेली है लेकीन जिस प्रकार मीडीया और खासतौर पर टी वी चॅनेल्स ने इस हत्याकांड को हवा दी है उसको देखकर तो लगता है क़ी आरूषी का क़त्ल हर उस पल किया गया है। जिस जिस पॅल उसकी हत्या की तहक़ीक़ात हमारे खबरीया चॅनेल करते. लगा क़ी पुलिस, जज और गवाह सबकी भूमीका अकेले मीडीया ही अदा क़र रहा है। टी वी चॅनेल्स ने जिस प्रकार से पिछले दिनों एक अबोध बालिका की निजी जिंदगी को बाज़ार का माल बनाकर बेचा उसने मीडीया के लोकतन्त्रा के चौथे स्तंभ की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है-
  • लगातार तर्क दिया जा रहा है क़ी खबरिया चॅनेल्स वो दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है । क्या वाकई जनता यही देखना चाहती है ?
  • लेकीन क्या इस देश की सवा अरब आबादी में से किसी एक व्यकती ने भी इन खबरिया चॅनेल्स को कहा की हमें इस हत्या कांड की तहक़ीक़ात करके और प्रेम कहानी बताओ ?
  • अगर नही तो फिर वो कौन सा पैमाना है जो इन खबर्चीयों को जज और पुलीस दोनों की भूमिका अदा करने की छूट देता है ?

जातीवाद और आरक्षण की आग


भारत में सामाजिक न्याय के नाम पर एक फूट डाली जाती है। देश का दूसरा वीभाजन करने के लिए  इस नई भाषा के प्रयोगकर्ता थे एक सामाजिक इंजीनियर "वीश्व नाथ प्रताप सींह" जिन्होंने  जातीवाद की जंजीरों में पहले से ही जकडे इस मुल्क में आरक्षण के नाम पर तमाम नई जातीयों को इसमे शामील कर नफरत की आग को और अधिक हवा दी तथा जातीवाद की जो दरार धीरे धीरे कम हो रही थी, उसे इसने और अधीक भयावह बना दिया। मंडल कमीशन की सिफारिसो को मानने की एक तरफा घोषणा करना तत्कालीन प्रधानमंत्री "वी.पी.सिंह" का एक स्वार्थी राजनातिक निर्णय था।
प्रतिकिर्या स्वरुप उत्तर भारत में इसका जवाबी विस्फोट आया जिसकी गूँज इस मुल्क में आज तक सुने दे रही है। फलस्वरूप यह देश सालो पीछे चला गया और इसी के साथ भारतीय समाज के दोष नजर आने लगे। विश्व में यही एक ऐसा देश है जहाँ आरक्षण ही मोक्ष का सास्वत फार्मूला बन गया है।
ऐसा माना जाता है की उन्न्ती एवं विकास के साथ वंचना में कमी आ जाती है किन्तु यहाँ उन्नति और विकास  के सापेक्ष यह सुची भी बढती चली गई। समस्या अपने विकराल रूप में आने को है क्यूंकि भारतीय समाज के जिन वर्गों को स्वर्ण माना जाता है वह इस आकर्षण नीति के कारण अपने आप को पीडीत और ठगा हुआ महसूस कर रहा है. संभवत वह दिन दूर नही जब ये भी आरक्षण की मांग कर बैठे
  • क्या होगा तब? कभी सोचा है इस पर किसी ने ?
  • क्या हम ग्रहयुद्ध की तरफ़ नही बढ़ रहे है ?
  • एक बार अखंड भारत का रक्त रंजित विभाजन धर्म के नाम पर किया गयाक्या अब जातीयों के नाम पर अखंड टुकड़े किये जाएँगे?
  • नाना पालकीवाला ने एक बार कहा था की "हिन्दुस्तान में जिस तरह से जाती और वर्गों की वजह से आपसी लडाई चल रही है, वह दिन दूर नही जब हम जिंदगी में एक बार फिर बटवारा देखेंगे"
  • विडंबना यह है की आज तक कीसी भी राजनैतिक दल ने इस खेल-तमासे को रोकने का नैतिक साह्स नही दीखाया
  • कोटा सिस्टम इस राजनैतिक खेल का एक अभिन्न अंग बन गया है और कोई सोच भी नही सकता की इस अदूर्दार्सिता और हताशा का नतीजा क्या होगा ?

Sunday, August 31, 2008

"इज्जत के नाम पर हत्या"



हरित क्रांति का छेत्र रहे करनाल जिले की धरती आज एक बार फ़िर युवा लड़के लड़की के खून से लाल हो गई।
9 मई 2008 को असंध ब्लाक के बल्ला गाव के जसबीर व् सुनीता को अपनी मर्जी से शादी करने के जुर्म में क़त्ल कर दिया गया। पिछले एक महीने में इस जिले में "इज्जत के नाम पर हत्या" की ये तीसरी घटना है।

बल्ला गाव की सुनीता के अपने ही गाव के जसबीर के साथ प्रेम सम्बन्ध थे। स्वर्ण कहलाई जाने वाली जाट जाती से दोनों सम्बंधित थे। हलाकि दोनों के गोत्र अलग अलग थे। सुनीता की मर्जी के खिलाफ उसकी शादी कर दी गई, परुन्तु वो उस रिश्ते को तोड़ आई व् जसबीर के साथ हिमांचल चली गई। बाद में पुलिस वालो के द्वारा पकड़े जाने पर सुनीता ने जिस जगह घरवालो ने शादी की थी वहां से तलाक ले लिया व् जसबीर के साथ रहने लगी। पिछले डेढ़ साल से दोनों एक साथ हिमांचल में रह रहे थे। दोनों का अपने परिवार से भी लगातार संपर्क था। एक तरह से दोनों के परिवार ने भी यह सम्बन्ध स्वीकार कर लिया था। परुन्तु यह समाज के उन ठेकेदारों को स्वीकार नही था, जो एस तरह की घटनाओ को परम्पराओं व् तथाकथित भाई चारे पर चोट समझते है. इसलिए इस तथाकथित जोड़े को क़त्ल करना जरूरी समझा, ताकि फ़िर कोई इस तरह का सहस न कर सके। वारदात से पहले दिन यह जोड़ा अपनी बहन की ससुराल में आकर ठहरा था, जिसकी भनक इन ठेकेदारों को लग गई। अगले दिन, दिन निकलने से पहले 30-35 लोगो ने इस युवा जोड़े को अगवा कर क़त्ल कर दिया। दोनों को क़त्ल कर दिन के दस बजे लड़की के घर के बाहर फेक दिया। सुनीता के गर्भ में सात माह का बच्चा पल रहा था, वो भी इन क्रूर हत्यारों के हत्थे चढ़ गया।
जिस गाव में यह घटना घटी उसमे किसी बाहरी व्यक्ति को, इन घटनाओ के सिकार परिवार वालो से मिलने नही दिया जा रहा था।
अगर घर-परिवार और प्रशासन इस दिशा में सक्रिय भूमिका दिखाए तो एस तरह की घटनाओ पर काबू पाया जा सकता है।इस तरह के युवा जोडो के लिए युगल सुरक्षा घर भी हर जिले में बनाया जन चाहिए। क्यूंकि प्यार एक बहुत खूबसूरत इबादा है। इसे तबाह होने से बचाना होगा

Friday, June 27, 2008

हंस की नजर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया

"हंस" मासिक पत्रिका ने टेलीविजन पत्रकारिता पर जनवरी २००७ में एक विशेषांक निकला था और अजीत अंजुम उसके अतिथि सम्पादक थे ।जहाँ अंजुम जी अपने लेख में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के इन कारनामों के समर्थक बने हुए थे तो उसी अंक में कम से कम आधा दर्जन लेख और कहानियाँ ही अंजुम जी के तर्कों की खिलाफत कर रहे थे । ताज्जुब यह था की इनके लेखक भी इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े बड़े नाम थे । कहा जा सकता है की टीवी चैनल्स ने लोकतंत्र के प्रहरी की भूमिका निभाई है और कुछ मामलों में यह सच भी साबित हुआ लेकिन इस भूमिकाओ के पीछे भी मीडिया की प्रहरी की भूमिका कम और व्यावसायिक स्वार्थ ज्यादा था
  • अभी तक आम आदमी राजनेताओं को लाशों की राजनीती करने के लिए दोष दिया करता था लेकिन आरुशी मर्डर केस में मीडिया ने जो खेल खेला है उसे आप क्या कहेंगे ?
  • एक अबोध बालिका की निजी जिंदगी को गुलछर्रे बताकर जिस प्रकार से दिखाया गया है क्या उसकी इजाज़त कोई सभ्य समाज तो नहीं दे सकता ?
  • हमारे यहाँ परम्परा रही है की मृतक के बाद उसकी बुराइयों की चर्चा नहीं किया करते हैं । लेकिन कोई चैनल तो आरुशी की डायरी के अंश पढ़कर सुना रहा था तो कोई प्रेम कहानी बता रहा था।
  • एक चैनल का कहना था की सारा देश इस कांड की सच्चाई जानना चाहता है। पता नहीं की उस चैनल का देश कौन सा है ?
  • सिर्फ़ आरुशी की हत्या पर मीडिया को इतनी चिंता क्यों है ?
  • क्या भारत देश के राज्य उत्तर प्रदेश के (शहर / जिले) बांदा , एटा , मैनपुरी का नाम इन मीडिया वालो ने नही सुना है ? इन जिलों मेंशायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब दो चार हत्याएँ होती हों ! लेकिन यह हत्याएं मीडिया की सुर्खियाँ नहीं बंटीहैं, चूंकि मरने वाले आरुशी जैसे साधन संपन्न घरानों के नहीं होते हैंदूसरे इन चैनल्स का देश दिल्ली औरउसकेआस पास ही समाप्त हो जाता है
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Wednesday, June 18, 2008

कल हो न हो



आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बीताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना और दीमाग को पुराने पल याद हो ना हो
आज एक बार फीर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फीर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते और ये यादें हो ना हो
आज एक बार मंदीर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो
बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह कल ये बारीश भी हो ना हो
आज हर काम खूब दील लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरहकल बाजुओं मे ताकत हो ना हो
आज एक बार चैन की नींद सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जींदगी मे चैन और आखों मे कोई सपना हो ना हो
क्या पता कल हो न हो