Monday, June 15, 2009

मुझे अपनी बाहों मे भर लो


नदी के
के इस पार
शब्दों का मेला है
कोई तुम्हे -
पुकार रहा -माँ
दीदी
पत्नी
दोस्त
प्रेमिका
इस भीड़ के लिए तुम
देह के दर्पण
का
अलग -अलग
हिस्सा हो
किसी के लिए बिंदिया
किसी के लिए राखी हो
आँचल मे प्रसाद सा भरा प्यार
सभी को चाहिए
लेकीन किसी के लिए वैशाखी हो
फिर भी -अपनी सम्पूर्णता के
महा एकांत मे
उस निर्जन मे
नदी के उस पार
मै कह रहा हूँ
आओ मेरे पास
मै हूँ सम्बंधो से परे
एक
शब्द -केवल प्यार
तुम्हारी चेतना
तुम्हारा जागरण
तुम्हारा स्वप्न
तुम्हारी जड़ ,
पूर्ण साकार चंदन सा महकता
वन मै ही हूँ
आओ
मुझे अपनी बाहों मे भर लो

मुझे अपने पास रख लो


अपनी हथेली की रेखाओं मे
मेरा नाम लिख लो
मुझे अपने पास रख लो
अपनी आँखों के पिंजरे मे
मुझे कैद कर लो
अपने मन रूपी गमले मे
मुझे गुलाब सा उगा लो
अपने आँचल के छोर मे
एक स्वर्ण सिक्के सा बाँध लो
मुझे अपने पास रख लो
उड़ते हुवे अश्व पर बैठा
एक राजकुमार
अपने हर स्वप्न मे
मुझे मान लो
अपनी बांह मे बंधी ताबीज
के भीतर
एक मन्त्र सा मुझे भर लो
अपनी गोल बिंदिया सा
मुझे अपने माथे पर
लगा लो
अपने हाथो मे रत्न जडित चुडियो सा
मुझे पहन लो
मुझे
अपने पास रख लो
मै तुम्हारी
पूजा की थाली मे
रोज -दीपक सा जल जाउंगा
मै तुम्हारी जिंदगी मे
शाश्वत -आस्था बनकर रह जाउंगा
मै तुम्हारी साँसों मे
मोंगरे सा महक जाउंगा
मै तुम्हारे ओंठो पर
गुनगुनाता हुवा सा -एक गीत रह जाउंगा
मै प्यार के कोमल कपास से बना तकिया हूँ
तुम्हारी तन्हाई की बांहों के लिए
भींचने के कम मे आ जाउंगा
मुझे अपने पास रख लों