Wednesday, June 17, 2009

ये कहीं और सुनने को न मिलेंगे।


कल अचानक बादलों को घिरते देखा। हालाँकि बारीश अभी दूर है लेकिन मैं जब भी पानी से भरे बादलों को देखता हूँ तो उस पिता की याद आती है जो अभी-अभी अपनी लाड़ली बेटी को विदा करके अपने सूने हो चुके घर के एक वीरान से कोने में अकेला खड़ा है। यह पिता एक बार फिर अपनी बेटी के लिए एक हाथी या एक घोड़ा बनना चाहता है जिस पर बैठकर उसकी बेटी सवारी कर सके। उस बादल को जरा गौर से देखिए, जो अब आपके छज्जे को छूकर निकलने वाला है। वह अपनी बेटी की याद में ही हाथी और घोड़ा बनने की कोशिश कर रहा है। ध्यान से सुनिए, यह गड़गड़ाहट की आवाज नहीं है, उस बादल की आत्मा में अपनी बेटी के साथ बिताए बचपन के दिन उमड़-घुमड़ रहे हैं। और यह बादल जो थोड़ा सी हेकड़ी में, दौड़ लगा रहा है, छोटा भाई है। इसकी चाल पर न जाइएगा। यह बादल हलका लग सकता है लेकिन अंदर से यह भी भरा हुआ है। इसकी बहन ने छह साल तक इसकी चोटी की है। अभी तो यह दौड़ रहा है लेकिन रात में जब थक जाएगा, तब घर के पिछवाड़े या किसी पेड़ की ओट में जाकर बिना आवाज किए सुबकेगा। और एक दुबला-पतला बादल जो कुछ कुछ उदास-सा यूँ ही इधर-उधर टहल रहा है, विदा हो चुकी बहन की छोटी बहन है। यह हमेशा दो चोटियाँ करती थी और बड़ी बहन हमेशा उसे डाँटती हुई कहती थी-एक करा कर। मुझे गूँथने में आलस आती है। इस बादल को देखेंगे तो लगेगा इसके चलने में न सुनाई देने वाली हिचकियाँ हैं। इन्हीं हिचकियों के कारण इसमें भरे पानी का अंदाजा लगा सकते हैं। और सबसे आखिर में जो साँवला बादल है वह माँ का आँचल है। उसका आँचल कभी न कहे जा सकने वाले दुःख से भारी हो गया है। अभी भी वह अपनी बेटी की यादों में खोया है जिसमें सुख-दुःख की बातें हैं, उलाहना है, प्रेम में काँपता, सिर पर रखा हुआ हाथ है। यह बादल जब भी बरसेगा, इसे बरसता देख बाकी बादल भी बरसेंगे। अपने को कोई भी नहीं रोक पाएगा। सब बरसेंगे। और ये बरसेंगे तो चारों तरफ जीवन के गीत गूँजेंगे। थोड़ा-सा वक्त निकालकर इन्हें सुनना। ये कहीं और सुनने को न मिलेंगे।

दिल की बात


जब भी लिखना
जी भर के लिखना
जुबान की नहीं,

बस
दिल की बात लिखना।


हमने देखा है,
दिल की बात,
जब दिमाग से होकर,
जुबान पर आती है,

तो
बात बिल्कुल बदल जाती है


यह अलग बात है,
जमाने को वही बात पसंद आती है

माँ गुजर जाने के बाद



ब्याहता बिटिया के हक में फर्क पड़ता है बहुत 
छूटती मैके की सरहद माँ गुजर जाने के बाद 

अब नहीं आता संदेसा मान मनुहारों भरा
खत्म रिश्तों की लगावट माँ गुजर जाने के बाद

जो कभी था मेरा आँगन, घर मेरा, कमरा मेरा 
अब वहाँ अनदेखे बंधन, माँ गुजर जाने के बाद

अब तो यूँ ही तारीखों पर निभ रहे त्योहार सब
खत्म वो रस्मे रवायत, माँ गुजर जाने के बाद

आए ना माँ की रसोई की वो भीनी सी महक 
उठ गया मैके का दाना, माँ गुजर जाने के बाद

वो दीवाली की सजावट, फाग के वो गीत सारे 
हो गई बिसरी सी बातें, माँ गुजर जाने के बाद

Monday, June 15, 2009

मुझे अपनी बाहों मे भर लो


नदी के
के इस पार
शब्दों का मेला है
कोई तुम्हे -
पुकार रहा -माँ
दीदी
पत्नी
दोस्त
प्रेमिका
इस भीड़ के लिए तुम
देह के दर्पण
का
अलग -अलग
हिस्सा हो
किसी के लिए बिंदिया
किसी के लिए राखी हो
आँचल मे प्रसाद सा भरा प्यार
सभी को चाहिए
लेकीन किसी के लिए वैशाखी हो
फिर भी -अपनी सम्पूर्णता के
महा एकांत मे
उस निर्जन मे
नदी के उस पार
मै कह रहा हूँ
आओ मेरे पास
मै हूँ सम्बंधो से परे
एक
शब्द -केवल प्यार
तुम्हारी चेतना
तुम्हारा जागरण
तुम्हारा स्वप्न
तुम्हारी जड़ ,
पूर्ण साकार चंदन सा महकता
वन मै ही हूँ
आओ
मुझे अपनी बाहों मे भर लो

मुझे अपने पास रख लो


अपनी हथेली की रेखाओं मे
मेरा नाम लिख लो
मुझे अपने पास रख लो
अपनी आँखों के पिंजरे मे
मुझे कैद कर लो
अपने मन रूपी गमले मे
मुझे गुलाब सा उगा लो
अपने आँचल के छोर मे
एक स्वर्ण सिक्के सा बाँध लो
मुझे अपने पास रख लो
उड़ते हुवे अश्व पर बैठा
एक राजकुमार
अपने हर स्वप्न मे
मुझे मान लो
अपनी बांह मे बंधी ताबीज
के भीतर
एक मन्त्र सा मुझे भर लो
अपनी गोल बिंदिया सा
मुझे अपने माथे पर
लगा लो
अपने हाथो मे रत्न जडित चुडियो सा
मुझे पहन लो
मुझे
अपने पास रख लो
मै तुम्हारी
पूजा की थाली मे
रोज -दीपक सा जल जाउंगा
मै तुम्हारी जिंदगी मे
शाश्वत -आस्था बनकर रह जाउंगा
मै तुम्हारी साँसों मे
मोंगरे सा महक जाउंगा
मै तुम्हारे ओंठो पर
गुनगुनाता हुवा सा -एक गीत रह जाउंगा
मै प्यार के कोमल कपास से बना तकिया हूँ
तुम्हारी तन्हाई की बांहों के लिए
भींचने के कम मे आ जाउंगा
मुझे अपने पास रख लों

Friday, June 12, 2009

माफ करना।


देखकर हुस्न तेरा
ग़र हो जाऊं शायर-दीवाना
तो
माफ करना।
बंधके खिंचा चला आऊं तेरे सदके पे बार-बार
तो
माफ करना।
हो जाए ग़र इश्क तुझे हौले-हौले मुझसे
तो
माफ करना।
उड़ जाए नींद रातों की तेरी ग़र मुझसे
तो
माफ करना।
बेचैन है ये दिल-ए-नादां ग़र थाम लो लगाम
तो अच्छा,
ख़ता हो जाए वरना
तो
माफ करना।