Sunday, October 5, 2008

"अरुषी मर्डर केस"


इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में डी.पी.एस. की स्टुडेंट आरूषी के मर्डर की "टी.आर.पी." लोक्प्रीयता "आई.पी.एल." खेलों से ऊपर रही है। आरूषी की हत्या एक पहेली है लेकीन जिस प्रकार मीडीया और खासतौर पर टी वी चॅनेल्स ने इस हत्याकांड को हवा दी है उसको देखकर तो लगता है क़ी आरूषी का क़त्ल हर उस पल किया गया है। जिस जिस पॅल उसकी हत्या की तहक़ीक़ात हमारे खबरीया चॅनेल करते. लगा क़ी पुलिस, जज और गवाह सबकी भूमीका अकेले मीडीया ही अदा क़र रहा है। टी वी चॅनेल्स ने जिस प्रकार से पिछले दिनों एक अबोध बालिका की निजी जिंदगी को बाज़ार का माल बनाकर बेचा उसने मीडीया के लोकतन्त्रा के चौथे स्तंभ की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है-
  • लगातार तर्क दिया जा रहा है क़ी खबरिया चॅनेल्स वो दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है । क्या वाकई जनता यही देखना चाहती है ?
  • लेकीन क्या इस देश की सवा अरब आबादी में से किसी एक व्यकती ने भी इन खबरिया चॅनेल्स को कहा की हमें इस हत्या कांड की तहक़ीक़ात करके और प्रेम कहानी बताओ ?
  • अगर नही तो फिर वो कौन सा पैमाना है जो इन खबर्चीयों को जज और पुलीस दोनों की भूमिका अदा करने की छूट देता है ?

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