Wednesday, March 18, 2009

एक स्वपन आँख में आया था

एक स्वप आँख में था

कोख में उसे छुपाया था ।
कुछ दिन भी न छिप पाया , झट गोद में आकर मुस्काया।
हसी खेल में गोद से भी खिश्का मेरा आँचल था ।
मै जरा ठिठका फ़िर आँचल तक सिर से फिसला ।
जब घर से बाहर वो निकला था , चाहा कि वो उड़ना सीखे ।
जब उड़ा तो क्यों नैना भीगे। 
उसके जाने पर घर मेरा क्यूँ लगता भुतहा सा। 
डेराघर में बिखरी उसकी चीज़ें : 

पैंट पुरानी,

कसी कमीजे,
टूटे खिलौने,
बदरंग ताशबने धरोहर,
मेरे पास मुस्काती उसकी तस्वीरें जब तब मुझे रूलाती है ।
उसकी यादें आँसू बन कर मेरे आँचल में छुप जाती है।
फोन की घन्टी बन किलकारी मनं में हूक उठाती है।
पल दो पल उससे बातें कर ममता राहत पाती है। 
केक चाकलेट देख कर पर पानी आँखों में आता है।
जाने क्योंकर मन भाता पकवान न अब पक पाता है।
भरा भगौना दूध का दिन भर ज्यों का त्यों रह जाता है ।
दिनचर्या का खालीपन हर पल मुझे सताता है। 
कब आएगा मुन्ना मेरा ?
कब चहकेगा आँगन ?
कब नज़रो की चमक बढ़ेगी ?
कब दूर होगा धुँधलापन ????

2 comments:

Unknown said...

aacha hai lekin aur mahnat kro

Anonymous said...

Bahut bahut accha... mohit