Monday, June 15, 2009

मुझे अपनी बाहों मे भर लो


नदी के
के इस पार
शब्दों का मेला है
कोई तुम्हे -
पुकार रहा -माँ
दीदी
पत्नी
दोस्त
प्रेमिका
इस भीड़ के लिए तुम
देह के दर्पण
का
अलग -अलग
हिस्सा हो
किसी के लिए बिंदिया
किसी के लिए राखी हो
आँचल मे प्रसाद सा भरा प्यार
सभी को चाहिए
लेकीन किसी के लिए वैशाखी हो
फिर भी -अपनी सम्पूर्णता के
महा एकांत मे
उस निर्जन मे
नदी के उस पार
मै कह रहा हूँ
आओ मेरे पास
मै हूँ सम्बंधो से परे
एक
शब्द -केवल प्यार
तुम्हारी चेतना
तुम्हारा जागरण
तुम्हारा स्वप्न
तुम्हारी जड़ ,
पूर्ण साकार चंदन सा महकता
वन मै ही हूँ
आओ
मुझे अपनी बाहों मे भर लो