Sunday, February 15, 2009

मै अकेला था कहाँ अपने सफर में.....


मै अकेला था कहाँ अपने सफर में.....
साथ मेरे छाव बन चलती रही तुम.....

तुम के जैसे चांदनी हो चंद्रमा मे,
आब मोती मे प्रणय आराधना मे,
चाहता है कोंन मंजील तक पहुंचना,
जब मीले आनंद पथ की साधना मे,
जन्म जन्मो मै जला एकांत घर मे,
और मेरे खवाब मे पलती रही तुम,
साथ मेरे छाव बन चलती रही तुम....
मै चला था पर्वतो के पार जाने,
चेतना के बीज धरती पर उगाने,
छु गए लेकिन मुझे हर बार गहरे,
मील के पत्थर वीदा देते अजाने,
मै दीया बनकर तामस मे लड़ रहा था,
ताप मे बन हीम-गलती रही तुम,
साथ मेरे छाव बन चलती रही तुम....
रह नही पाए कभी थके हारे,
प्यास मेरी ले गए हर सीन्धू खारे,
राह जीवन की कठीन कांटो भरी,
काट दी दो चार सूधीयों के सहारे,
सो गया मै हो थकन की नींद के वस्,
और मेरे स्वप्न मे पलती रही तुम,
साथ मेरे छाव बन चलती रही तुम....

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