Sunday, July 26, 2009

समलैंगिकता -कितनी सही , कितनी ग़लत ?

न्यायलय ने समलैंगिकता को सही ठहरा दिया। कानूनन ये न्यायोचित हो गया की यदि दो एक लिंग के व्यक्ति साथ रहकर सुख और संतुष्टि प्राप्त कर रहे हैं तो इसमे कुछ ग़लत नही है। लेकिन इधर न्यायलय का फ़ैसला आया उधर देशभर में कोहराम मच गया। क्या धार्मिक संगठन , क्या राजनितिक पार्टियाँ, और क्या समाज के ठेकेदार। सभी एक सुर में इस निर्णय की खिलाफत करने मैदान में उतर आए। किसी ने इसे समाज के लिए अभिशाप बताया तो कोई संस्कृति के लिए खतरा बता रहा है। इनमे वो लोग भी शामिल हैं जिनके स्वयं के कृत्यों से संस्कृति अनेकों बार शर्मसार हुई है। जब ये धार्मिक संगठन मन्दिर -मस्जिद को मुद्दा बनाकर लड़ते हैं तो संस्कृति प्रभावित नही होती । जब जींस और बुर्के पर बेबुनियादी फतवे जारी होते हैं तो संस्कृति को नुक्सान नही होता । जिस समाज में नारी को देवी का स्थान दियागया है उसी समाज में जब नारी अपमानित होती है तो संस्कृति सुर्स्क्षित रहती है । लेकिन अगर दो लोग अपनी मर्ज़ी से साथ रहना चाहे तो संस्कृति पर आंच आने लगी। यहाँ पर तो बात समलैंगिको की है ,जब एक लड़का और लड़की अपनी मर्ज़ी से साथ नही रह सकते तो समलैंगिकता को इतनी आसानी से कैसे पचा सकता है ये समाज ।ये सच है की भारतीय समाज में जहा अभी तक अंतरजातीय -विवाह को पूर्ण रूप से मान्यता नही मिली है। समलैंगिकता स्वीकार करना इतना आसान नही है, लेकिन ये कहना की ये संस्कृति को दूषित करेगा, सभ्यता के लिए खतरा बन जाएगा, ठीक नही है ।

4 comments:

Mukul said...

bahoot saartak vivran tathya parak lekh rochak shailee badhai

Mukul said...

rochak lekh saargarbhit katahan
badhai

Krishna Kant mishra said...

good lekh aaj ke smj main kya ho rh hai use aap ne bkhubi dihkya hai thanks

Arun said...

khoob likha hai
wakai me badhiya